Saturday, August 18, 2012

बनारस की यादे !

तुम्हें क्या अच्छा लगता है? काशी हिंदू विश्वविद्यालय के रिज़ से गुज़रते हुए इस सवाल ने ऐसी शोर मचाई कि आवाज़ यूपी कॉलेज के गेट तक पहुंच गई। रशिका ने पूछा था राकेश से। मुझे क्या अच्छा लगता है, मतलब किस सेंस में। अटपटे जवाब पर रशिका ने कहा कुछ तो अच्छा लगता होगा जिससे तुम खुद को जोड़ते होगे।फिल्म, हीरो, गाना, खाना, कपड़े, शहर, दोस्त।इसका जवाब सोचते सोचते राकेश बनारस के अपने घर की छत पर भटक गया।बीस साल की उम्र तक किसी ने नहीं पूछा कि अच्छा क्या लगता है?बहने रोटी सब्जी और दाल चावल थाली में रख कर कमरे में दे आती थी।नाश्ते में यही सबको मिलता था।किसी से पूछ कर कभी नाश्ता नहीं बना कि आज क्या खाना है।पिता जी जो कपड़ा लाए वही पहना गया।रिश्तेदारों की शादियों में जहां जहां गए वहीं घूमा गया।अलग से किसी ने पूछा ही नहीं कि क्या अच्छा लगता है।इंजिनियर बनना ही है ये तो पिताजी ने कहा था।इसान ने उसके हाथों को झटक दिया। हंसने लगा।कहां ऐसे सोच रहे हो जैसे किसी इम्तहान में जवाब लिखने लगे।


राकेश को कहना पड़ा तुम बनारस की लड़कियों के पसंद बहुत हैं।राकेश बहुत याद करके बोला कि बनारस का तिलकुट और अनरसा अच्छा लगता है।इसान को लगा कि किसी पाषाण युग का व्यंजन बता रहा है। हंसने लगा।राकेश रिज की गर्माहट को भांप नहीं पाया।वो परेशान हो गया।अपनी पसंद ढूंढने में। इसान ने कहा तुम्हें पहले कौन सी लड़की अच्छी लगती थी।पहले तो किसी से मिला ही नहीं।गांव में मोहल्ले की लड़कियां होती थीं।जिनसे बातचीत होती थी मगर राखी के दिन सबसे ज़्यादा।हम सब मोहल्ले में इस दिन भाई बहन हो जाते थे।रही बात किसी के पसंद करने की तो लड़कियां सपने में आती थीं।किसी दोपहर पड़ोस की कोई लड़की आ भी गई तो चीनी मांगने।झलक भर मिलती थी।बस।तो क्या पसंद करते।इसलिए कमरे में काजोल की तस्वीर होती थी।मोहल्ले की लड़की की नहीं।हां शादी में कभी कभी लहंगे में सजी धजी लड़कियों पर नज़र जाती थी।मगर बात करने का मौका नहीं मिला। दुल्हन के पीछे बैठी चंद लड़कियां।आधी से तो राखी बंधाई होती थी।बाकी दोस्त की बहनें होती थीं।सड़क पर कोई लड़की जाती हुई मिलती भी तो उनके पीछे भाई सायकिल से आता दिखता था।मास्टर साहब तो अपनी बेटी को खुद ही छोड़ने कालेज आते थे। और बात करने की कोशिश भी करो तो नेता गुंडे चले आते थे कि वो मेरी है।तुमने उससे कैसे बात की।इसान हंसने लगा।राकेश ने कहा कि हम लड़कों की दुनिया में लड़कियों पर ऐसे ही सट्टे लगते हैं। रही बात तुम्हारे सवाल की तो किसे पसंद करता हूं कहना मुश्किल है। क्रश होगा...ये भी कह दो कि नहीं था। बनारस के लड़कों को क्रश नहीं होता। इसान राकेश की क्लास लेने लगा। राकेश ने कहा बहुतों पर क्रश हुआ।कोई भी लड़की बहुत दिनों के लिए नहीं दिखती थी।जो भी जितनी देर के लिए दिखती क्रश हो जाता। रशिका ने कहा अल्लाह जाने बनारस में जवानी आती भी है या नहीं।क्यों?राकेश बोल उठा। हम क्या बनारस के जवान नहीं हैं।लेकिन यहां तो तुम मेरे साथ रिज में अकेले घूम रहे हो।दोस्तों ने देख लिया तो क्या जवाब दोगे।बस राकेश को सांप सूंघ गया।बोलने लगा तभी कह रहा था कि मेन रोड से चलते हैं।लगेगा कि कालेज से आ रहे हैं।चलो चलते हैं।रशिका बोली बैठो यहीं।कितना अच्छा है।किसी के आने से डरते हो तो लड़की से बात ही मत करो।नहीं यार वो बात नहीं है।राकेश अब तनाव में था।बेकार के रात भर..तुम तो जानते हो न कमरे में मेरा चचेरा भाई भी रहता है।मजाक में भी पता चल गया तो बात घर तक पहुंच जाएगी।चलो कालेज के सामने बैठ कर बात करते हैं।कब तक?रशिका का यह सवाल राकेश को और परेशान कर गया।कब तक? हां राकेश, तुम मेरे साथ अकेले बात करने में डरते हो तो साथ क्या खाक निभाओगे।मुझे भी तो तुमसे बात करनी है। बात वो नहीं है।राकेश बोलने लगा।मैं जिनके साथ रहता हूं।उन्हें भी देखना होता है।कहने लगेंगे कि मैं पढ़ता लिखता नहीं। लड़की घूमाता रहता हूं। लड़की घूमाना। ये क्या होता है राकेश। अरे बनारसी लड़के ऐसे ही बोलते हैं।

बस बात टूट गई।रशिका नाराज़ हो गई।रिज़ से बाहर आकर बंदरों के बीच बादाम फेंक दिया।आटो पकड़ कर घर चली गई !राकेश अपने आस पास बनाए डर के मकानों में घिरा रहा।यूपीएससी का सपना, इसान और घर बात पहुंचने का खौफ।प्रेम के ये बेहतरीन लम्हे भय की भेंट चढ़ गए।वो पैदल ही दुर्गा कुंड की तरफ जाने लगा। अपने से बात करने लगा।क्या होता कोई देख ही लेता।दोस्त ही तो है मेरी।ऐसे तो किसी लड़की से बात नहीं कर सकते।फिर वो भी तो लड़कियों से बात करते हैं।रशिका को फोन कैसे करें। कहीं फोन उसे पापा मम्मी ने उठा लिया तो।दिल में ऐसा चोर बैठ गया कि राकेश इस अहसास को जी ही नहीं सका कि रशिका उसे अच्छी लगती है। बनारस की लड़की रशिका।उसकी किताबें, टिफिन बाक्स, स्वेटर का रंग।सब अच्छा लगता है।मजबूर ये हालात इधर भी हैं।उधर भी हैं।सिलसिला का यह मशहूर लाइन राकेश अक्सर अपने टू इन वन पर सुनता था। आज लग रहा था कि वो चौतरफा मजबूर हालातों से घिर गया है।।रास्ते भर सोचता सोचता घर आ गया। दरवाज़ा खोलते ही दीपक ने पूछा कहां थे?कोई साथ में थी क्या?दीपक के चेहरे की कुटील मुस्कान में घर में घुसना मुश्किल कर दिया।राकेश को यकीन हो गया कि किसी न किसी ने रिज में रशिका के साथ घूमते हुए देख लिया है।इश्क में अक्सर वहम हो जाता है।हर सवाल छुपा कर रखे गए राज़ तक पहुंचता लगता है।राकेश के चेहरे की हवाई उड़ गई। चुपचाप कमरे में गया।हर नज़र से खुद की नज़र बचाते हुए।खुद से बोलने लगा कि लाइब्रेरी बहुत अच्छी है।देर तक पढ़ने से काफी काम हुआ।खूब पढ़े हैं।पता नहीं राकेश यह जवाब क्यों दे रहा था।दीपक अपने सवाल का जवाब भूल सोनिया के बारे में सोचने लगा।सोनिया तो तब भी आती थीं जब वो नहीं आती थी।बहुत देर तक सोचा कि बस पकड़ कर उसके घर ही चले जाए।मगर बताएंगे क्या कि कहां जा रहे हैं?इस सवाल के जवाब के इंतज़ार ने उसे देर तक बिस्तर पर लिटाये रखा।

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